कोई सुखद वस्तु पास में रहने पर भी मन में इस इच्छा का
2.
वह “सुदंर” को ज्ञान मात्र की वस्तु नहीं, सुखद वस्तु मानता था, किंतु उस सुख को जो “सुदंर” के प्रेक्षण से उत्पन्न होता है वह संसर्गवर्जित मानता था।
3.
वह “सुदंर” को ज्ञान मात्र की वस्तु नहीं, सुखद वस्तु मानता था, किंतु उस सुख को जो “सुदंर” के प्रेक्षण से उत्पन्न होता है वह संसर्गवर्जित मानता था।
4.
संसार में दो प्रकार की वस्तुएं हैं-अच्छी और आकर्षक | ये दोनों ही मनुष्य द्वारा अपनाये जाने के लिए उसे आकर्षित करती हैं | उसे सोच-विचार कर इन दोनों में से कोई एक वस्तु का चुनाव करना चाहिए | बुद्धिमान व्यक्ति आकर्षक वस्तु की उपेक्षा अच्छी वस्तु का चुनाव करता है, लेकिन मूर्ख व्यक्ति लोभ और आसक्ति के वशीभूत होकर आकर्षक या सुखद वस्तु का चयन कर लेता है और परिणामतः ब्रह्मज्ञान (आत्मानुभूति) से वंचित हो जाता है |